कातिल के हाथों में डंडे झंडे हैं
और तुम्हारे हाथों में सरकंडे हैं
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गंगा नही नहा पाओगे, शर्त लगी
घाट घाट पर काबिज उनके पंडे हैं
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क्या निर्यात करें हम बोलो दुनिया में
पास हमारे केवल गीले कंडे हैं
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कुरसी पर काबिज है खूनी, व्यापारी
उनके पास चुनावी सौ हथकंडे हैं
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देंगे तालीम भला दिल्ली वाले
उनके हाधों में ताबीजें गंडे है
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कैसे पार लगेगी नैया, पता नहीं
उनके पास नये ढेरों हथकंडे हैं
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झुग्गी चुभती है उन सबकी आंखों में
जिनके अपने एक नहीं दसखंडे हैं
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@ राकेश अचल
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