इजरायल और ईरान के टकराव ने एक बार फिर वैश्विक शक्तियों को अपना रुख साफ करने पर मजबूर कर दिया है. एक ओर रूस खुलकर अमेरिका और इजरायल की नीति पर हमला कर रहा है, वहीं भारत सतर्क लेकिन साफ संकेत दे रहा है कि 'युद्ध से नहीं, शांति से समाधान निकलेगा.' यह संदेश अमेरिका के लिए है या इजराइल के लिए ये स्पष्ट नहीं है
ईजराइल ने अप्रत्याशित रूप से ईरान पर हमला कर तीसरे विश्वयुद्ध की नींव रख दी है. नौबत परमाणु तक जा सकती है क्योंकि इजराइल ने ईराक के परमाणु ठिकानों को भी निशाना बनाया है
मध्य पूर्व में में इजरायल और ईरान के बीच छिड़े युद्ध पर अब वैश्विक प्रतिक्रियाएं सामने आने लगी हैं. भारत और रूस दोनों ने इस सैन्य संघर्ष पर गंभीर चिंता जताई है. लेकिन इन प्रतिक्रियाओं के पीछे असली संदेश कहीं और जा रहा है.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू से फोन पर बातचीत की.मोदी ने खुद एक्स पर लिखा, ‘प्रधानमंत्री नेत्नयाहू से फोन पर बात हुई. उन्होंने वर्तमान हालात की जानकारी दी. मैंने भारत की चिंता जताई और क्षेत्र में जल्द शांति और स्थिरता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.’
इजरायल के हमले के बाद यह पहली उच्चस्तरीय बातचीत थी, जिसमें मोदी ने साफ शब्दों में कहा कि भारत इस संघर्ष में कूटनीति और शांति की बहाली को प्राथमिकता देता है. इजरायल ने हाल ही में ईरान के सैन्य और न्यूक्लियर ठिकानों पर जबरदस्त हवाई हमला किया था, जिसमें कई शीर्ष सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक मारे गए.
आपको याद होगा कि भारत ने हमेशा मिडल ईस्ट में एक संतुलित भूमिका निभाई है. पीएम मोदी का नेतन्याहू से संवाद एक तरफ इजरायल को डैमेज कंट्रोल का मौका देता है, वहीं दूसरी तरफ वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को और मज़बूत करता है. भारत ने हिंसा की आलोचना किए बिना अपनी ‘शांति’ की भूमिका स्पष्ट कर दी.लेकिन इतने से काम चलने वाला नही है. भारत के ईरान से पारंपरिक रिश्ते बहुत पुराने हैं. इजराइल के जन्म के पहले से ये रिश्ते हैं. इन रिश्तों को इजराइल से रिश्तों के लिए कुर्बान नही किया जा सकता.
इस जंग पर रूस की प्रतिक्रिया और भी कड़ी रही. क्रेमलिन ने इजरायल के हमले को ‘बिना उकसावे के अवैध सैन्य कार्रवाई’ बताया और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का खुला उल्लंघन करार दिया. रूस ने सीधे-सीधे इजरायल पर ‘कूटनीतिक प्रयासों को बर्बाद करने’ का आरोप लगाया. रूसी विदेश मंत्रालय ने पुतिन के निर्देश पर एक विस्तृत बयान जारी किया, जिसमें कहा गया, ‘संयुक्त राष्ट्र सदस्य देश के खिलाफ इस तरह की अकारण सैन्य कार्रवाई, उसके नागरिकों और शांतिपूर्ण शहरों पर हमला, पूरी तरह अस्वीकार्य है. यह अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाला है.’
रूस ने कहा कि इस पूरे तनाव की जड़ ‘पश्चिमी देशों की ईरान विरोधी हिस्टीरिया’ है. पुतिन को लगातार इस घटनाक्रम की जानकारी मिल रही है, और रूस ने एक बार फिर अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु डील को पुनर्जीवित करने में मदद का प्रस्ताव दिया है. रूस ने यहां तक कहा कि वह ईरान से उच्च संवर्धित यूरेनियम हटाकर उसे नागरिक उपयोग के लिए तैयार करने को भी तैयार है.
हालांकि भारत और रूस की प्रतिक्रियाएं अलग-अलग शब्दों में आईं, लेकिन दोनों का निशाना अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका की मध्य-पूर्व नीति पर था. भारत, जो अब वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक संतुलन साध रहा है, उसने हिंसा से परहेज़ और शांति की ओर लौटने की अपील की. वहीं रूस, जो ईरान का रणनीतिक साझेदार बन चुका है, उसने इजरायल और अमेरिका को आगाह किया कि क्षेत्र को युद्ध की आग में झोंकना विश्व शांति के लिए बेहद खतरनाक होगा.
रूस ने साफ कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता. पश्चिमी देशों को चाहिए कि वे इस मसले को डायलॉग और कूटनीति से हल करें. क्रेमलिन ने यह भी याद दिलाया कि अमेरिका और ईरान के बीच रविवार को ओमान में बातचीत प्रस्तावित है, और इस दिशा में पहल होनी चाहिए.
भारत और ईरान के रिश्ते ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामरिक महत्व के आधार पर गहरे और बहुआयामी हैं। दोनों देशों के बीच संबंध प्राचीन सभ्यताओं, व्यापार, और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से शुरू हुए और आधुनिक काल में भी ये रिश्ते विभिन्न क्षेत्रों में विकसित हुए हैं.भारत और ईरान (तत्कालीन फारस) के बीच सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध सिन्धु घाटी सभ्यता और अचमेनिद साम्राज्य के समय से रहे हैं। बौद्ध धर्म और पारसी धर्म के आदान-प्रदान ने दोनों सभ्यताओं को जोड़ा।
मुगल काल में फारसी भाषा और संस्कृति का भारतीय उपमहाद्वीप पर गहरा प्रभाव पड़ा। फारसी भारत में प्रशासनिक और साहित्यिक भाषा थी।पारसी समुदाय: ईरान से भारत आए पारसी समुदाय ने भारतीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया।आधुनिक काल में राजनयिक संबंधस्वतंत्रता के बाद: भारत और ईरान ने 1950 में औपचारिक राजनयिक संबंध स्थापित किए। दोनों देश गुट-निरपेक्ष आंदोलन के सदस्य रहे और वैश्विक मंचों पर सहयोग करते रहे।वर्ष 2003 में नई दिल्ली घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर के साथ दोनों देशों ने रणनीतिक साझेदारी को मजबूत किया। ईरान भारत के लिए कच्चे तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है। भारत की ऊर्जा सुरक्षा में ईरान की भूमिका महत्वपूर्ण रही, हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण हाल के वर्षों में आयात में कमी आई।
आपको याद होगा कि भारत ने ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास में महत्वपूर्ण निवेश किया है। यह बंदरगाह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है, जिससे क्षेत्रीय व्यापार और कनेक्टिविटी बढ़ती है। यह परियोजना भारत की रणनीति का हिस्सा है, जो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (चीन द्वारा समर्थित) के जवाब में है। भारत और ईरान के बीच चावल, चाय, दवाइयाँ, और अन्य वस्तुओं का व्यापार होता है। हालांकि, प्रतिबंधों ने द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित किया है। भारत और ईरान ने अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और स्थिरता के लिए मिलकर काम किया है। चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता भेजी। दोनों देश आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी, और समुद्री डकैती जैसे मुद्दों पर सहयोग करते हैं। भारत और ईरान हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए भी काम करते हैं।
ईरान के साथ भारत का सहयोग क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में मदद करता है, विशेष रूप से चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव को कम करने में.ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों ने भारत-ईरान व्यापार और ऊर्जा सहयोग को सीमित किया है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों और रणनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा: ईरान के कुछ पड़ोसी देशों (जैसे सऊदी अरब) के साथ भारत के बढ़ते संबंधों के कारण रिश्तों में जटिलता आ सकती है।भुगतान तंत्र और बैंकिंग प्रतिबंधों ने द्विपक्षीय व्यापार को प्रभावित किया। भारत ने रुपये में भुगतान जैसे वैकल्पिक तरीकों का उपयोग किया, लेकिन ये समस्याएँ बनी रहती हैं।6. हाल के घटनाक्रम (2025 तक)चाबहार पर प्रगति: भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास को तेज किया है। 2024 में भारत और ईरान ने बंदरगाह के संचालन के लिए 10 साल का समझौता किया है. ईरान में भारत के करीब 90 लाख लोग हैं सो अलग.
अब देखना ये है कि पहले से विदेश नीति के मामले में कयी बार पटकनी खा चुका भारत इस नाजुक मौके पर भविष्य में क्या रुख अपनाता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ये परीक्षा की घडी है क्योंकि वे इजराइल के प्रधानमंत्री के साथ भी अपनी निकटता का प्रदर्शन पहले भी कर चुके हैं
@राकेश अचल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें